मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

सूत्र _जहाँ एकता होती है'वहाँ संपत्ती होती है ।

जहाँ सुमति तहाँ संपति नाना ।


मित्रों  महाँ कवी तुलसी की कविता की उपरोक्त  पंक्ती बिलकुल सोला आने सच है ।

क्योकि  मित्रो एकता का चमत्कार मेने खुद  अपनी आँख से देखा है ।आज से लगभग दस साल पहले मेरे गाँव मे एक गरीव परिवार रहता था  जिसमे सभी  बडे छोटे कुल वारह सदस्य  थे ।उस समय वे बहुत ही गरीब थे । धन दोलत के नाम पर  उनके पास  एक झोपडा और दो एकड जमीन मात्र  थी । पिछले महिने जब मे इस परिवार से मिला 'उनके घर गया था ।एक काम से 'वहाँ मेने उनका पक्का मकान 'कार टेक्टर 'आदी सुख सुविधा देखकर में अचरज मे पड गया । बातचीत के दोरान  उनहोने मुझे बताया की हमने छह  एकड जमीन  और खरीद ली है 'और  उनके पास  अब  आठ  एकड जमीन है ।यह सब देख सुन कर में विचार करने पर मजबूर हो गया की आखिर यह सब चमत्कार हुआ केसे ।मित्रों  एक सप्ताह मे मेने आखिर  इस रहस्य का पता लगा ही लिया ।मित्रों  इस परिवार मे एक  उसूल बना है ।जिसके पालन से यह परिवार  आज  आथृक विकास कर रहा है । 
वह  उसूल कुछ  एसा है । कि  इस परिवार के लोग रोजाना रात के भोजन के बाद' सभी व्यस्क सदस्य  एक साथ बेठते है 'और काम धंधे की बाते करते है 'महिलाओ सहित सभी सदस्यो को अपनी बात कहने का अवसर दिया जाता है । एव  आपस मे सलाह मश्विरा के बाद सभी की सहमती से 'अगले दिन के काम की रूप रेखा वा योजना वनाई जाती है ।याहाँ तक की रात मे ही सबकुछ तय हो जाता है 'की सुवह किस सदस्य को क्या  काम करना है ' किसको कहाँ जाना है ।आदि सबकुछ फिक्स होने के बाद ही यह लोग रात को सोते है ।यह  इनका रोज का नियम है ।
मित्रों इस परिवार की  खुशहाली एवं संपंनता का यही एक राज़ है । यहाँ एकता हैं ।
मित्रों अब हम  एकता की शक्ती वा चमत्कार को  दूशरे उदाहरण से समझेगे । आपने 'बहू लक्ष्मी ' नामक  कहानी तो सुनी या पढी ही होगी मदि नही तो संछेप्त मे कहानी कुछ  इस पृकार है _एक परिवार मे सात भाई है ।आभी बडे भाई की ही शादी हुई  है ।बाकी सभी क्वारे है माँ बाप चल बसे है ।सभी भाईयो का घर सामान  आदि का बटबारा हो गया है ।सभी अलग -अलग कोठरियो मे रहते है 'सभी के अलग -अलग  चूलहे 'पानी के मटके आदि सभी अलग है ।सभी भाई न्यारे न्यारे पडोसियो के समान रहते है ।और सातो भाई एक सेठ के याहँ मजदूरी करते है ।सेठ से अफने महनताने के बदले मे एक किलो चने लेते है । और सुवह शाम  आधा आधा किलो चने भून कर खाते है यह  इनका रोजका नियम है ।
जव पहली बार बडे भाई की बहू इस घर मे आती है । तो इस घर के लोगो का रहन सयन खान -पान देखकर  हेरान होती है ।और वह  इस घर परिवार की स्थति सुधारने का निश्चय करती है ।दुशरे दिन जब सब भाई  काम पर चले जाते है । तब वह सब चूलहे मटके आदि फोड कर फेक देती है 'और बाकी गेर जरूरी सामान बाँध कर रख देती है । साफ सफाई  के बाद सारे घर को लीप पोत देती है । और पडोस से चने के बदले मे  गेहू का आटा 'दाल 'नमक 'मिरची आदि सामान लाकर बढिया भोजन बनाकर रख देती है ।जब सातो भाई शाम को घर बापस  आकर देखते है 'की चूलहे मटके गायब है । इस बात से वे गुसासा करते है ।पर भाभी के समझाने व बढिया भोजन करने के बाद सब खुश होते है । तीशरे दिन बहू सातो भाईयो से कहती है की आज से तुम  अपने सेठ से काम के बदले मे रूपये लाया करो । अब सभी उसकी बात मान कर चलने लगे ।और बहू ने अपने तरीके से घर चलाना आरंभ कर दिया ।और देखते ही देखते यह घर परिवार खुशहाल हो गया । एसी थी बहू लक्ष्मी ।
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चूना उघोग, कम लागत, आधिक मुनाफा

  आज भारत मे 75 पैरेंट लोग पान में जो चुना खाते है।  इस चूने को बनाना और इस तरह की डिब्बी में भरकर बेचने वाले लोग भारी मुनाफा कमाई करते है।