सोमवार, 26 सितंबर 2016

बुन्देली कवि ईसुरी ।

लोक कवि ईसुरी का जन्म सन 1841 को युपी के जिला झासी की माऊरानी पुर तेहसील मे मेढकी नामक गॉव मे हूआ था । ईसुरी वृहम्ण जाती के थे । उनके पिता जमीदार के याहॉ काम करते थे । ईसुरी को पढाने का बहुत प्रयास किया उनके पिता और मामा ने पर  ईसुरी का मन पढने मे नही लगा और वे अनपढ ही रहे ।ईसुरी खेतो की रखवाली का काम करते थे ' एवं खेतो की मेडो पर  एकांत मे बैठे बैठे मन ही मन कविता गढते फिर लोगो को सुनाते उनकी कविताए सुन कर लोग बहुत खुश होते ।ईसुरी की प्रेम रस की कविताए स्थानिय बुनदेलखंडी भाषा मे होती थी ।ईसुरी से प्रभावित होकर  उनके शिष्य बने ' धीरज पंडा ' जो ईसुर की कविता को लेखाकित करते थे ।उसी भाषा मे जयो की त्यो बुन्देली मेलिखते थे ।{बुन्देली भाषा बहुत प्यारी भाषा है अगर  इस भाषा मे कोई गाली भी देता है तो वह भी मीठी लगती है ।एक कवि  ने कहा है _ एसी प्यारी लगत बुन्देली ' जैसी कोई नार नवेली ।}
ईसुरी मुंशी प्रेमचंद्र की भाती जन जीवन पर  आधारित रचनाए लिखते थे ।और वे अपने जीवन पर भी कविता बनाते थे ।ईसुरी का विवाह श्यामबाई के साथ हुआ ' फिर  उनके यहाँ तीन लडकियों का जन्म हुआ ' अपने जीवन के इस पायदान पर  ईसुरी ने एक कविता तैयार की_ जब से सिर पर परी गृहस्ती ' ईसुर भूल गये सब मस्ती ।
ईसुरी की कविता से प्रभावित होकर छतरपुर के राजा ने ईसुरी के दरबारी कवि बनाने का संदेश भेजा जिसे ईसुरी ने स्वीकार नही किया ' और जवाब मे एक कविता लिख भेजी की ईसुरी को चाकरी पसंद नही है ।जब  उनकी पत्नी का दिहांत हो गया ' तो ईसुरी दूशरे गॉव मे रहने लगे जहाँ उनहे एक रंगरेजन से प्यार हो गया ।
इसमे दोराय हैं कोई कहता है की ईसुरी की प्रेमिका ' रजऊ ' उनकी काल्पनिक प्रेमिका थी जो उनकी कविताओं की पात्र थी । हकीकत जोभी हो ईसुर जाने ।सन 1909 मे ईसुरी का  दिहांत हो गया ।इसके कुछ समय बाद बुंदेलखंड की नचनारीओ ने अपने नाच के दोरान  ईसुरी की कविताए गाना शुरू किया जिससे ईसुरी का नाम दूर दूर तक जाना जाने लगा ।
इसके बाथ  ईसुरी की कविताए होली के अवसर पर फाग के नाम से गाने का चलन चला जो आज भी कायम है ।अब  ईसुरी की फागो के बिना होली के रंग फीके लगते है ।क्योंकि उनकी प्रेमरस भरी कविताए मन को छू जाती है ।ईसुरी की कविता फाग के नाम से प्रशिध है ।और  ईसुरी आज भी लोगो के दिल मे बसे है ।
ईसुरी की कविता की पंक्तियाँ _ 
ऐगर बैठ लेओ कछू कानें ' काम जनम भर रानें " 
सबसौ लागो रातु जियत भर ' जा नईं कभऊँबढानें " 
करियो काम घरी भर रै के ' बिगर कछू नईं जानें " 
इ धंधे के बीच  ईसुरी ' करत करत मर जाने ।
एसे थे बुंदेलखंड के कवि ईसुरी ।

चूना उघोग, कम लागत, आधिक मुनाफा

  आज भारत मे 75 पैरेंट लोग पान में जो चुना खाते है।  इस चूने को बनाना और इस तरह की डिब्बी में भरकर बेचने वाले लोग भारी मुनाफा कमाई करते है।