शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

वित्त संबंधी पुरानी कहावते ।

आर्थिक विषय पर पूर्वजो का शोध पुरानी कहावते । शुभ लाभ की प्रस्तुती ।
(1) बाप भला न भैया' सबसे भला रूपाइया । (2) सस्ता रोए बार बार ' मेहगा रोए एक बार । (3) खेती करें बंजी जाए ' दो मे से एक न पाए । (4) बंद मुटठी लाख की 'खुली मुटठी खाक की । (5) जिंदा हाथी लाख का ' मरा सबा लाख का । (6) पैसा न धेला ' बहू चली मेला । (7) हाथ न कोडी ' नाक छिदान दोडी । (8) नौ नगद ना तेरह उधार । (9) चोखा लेना ' चोखा देना । (10) लेना एक न देना दो । (11) आज नगद ' कल उधार । (12) पैसा फेको ' तमाशा देखो । (13) आम के आम ' गुठली के दाम । (14) जो दिखता है ' वो बिकता है । (15) गरीब की लुगाई ' सब की भोजाई । (16) खरचा रूपया ' अठन्नी आय । (17) घर की आधी भली ' बाहर की पूरी बुरी । (18) हेल्थ इज दा बेल्थ ।(अंग्रेजी कहावत) (19) धरती खोदे धन मिले ' मित्र मिले परदेश । (20) जो देन जानता है ' वो लेना भी जानता है । (21) धर का दाम खोटा ' परखईंया को दोष । (22) कठिन चाकरी ' भीख निकाम । (23) पहला सुख निरोगी काया ' दुजा सुख घर मे माया । (24) कुछ पाने के लिए ' कुछ खोना पडता है । (24) जैसा काम ' बैसा दाम । (25) पैसे की कदर है ' बाकी सब गदर है

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मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

अमीरी के लोभ मे लुटते है लोग ।











यदि किसी आदमी से सौ रूपये मागे जाते है ' तो वह देने से मना कर देता है  । और  अगर  आदमी को  लाखो रूपये के फायदे की कोई झूटी तरकीब का विश्वास देकर ' हजार रू भी मागे जाए तो  25%  लोग देने को तैयार हो जाते है ।
क्योकि हर  आदमी धन पाना चाहता है ।  आदमी की इस कमजोरी का फायदा  उठाते है कुछ जायदा होशियार लोग । जो  तंत्र ' मंत्र ' यंत्र ' टोटको आदि से लोगो को अमीर होने का झूठा भरोसा दे कर ' उनसे खूब पैसा एठते है । इस प्रकार की ठगी के धंधे आज खूब फल फूल रहै है । जिनमे कोई हनुमान यंत्र बैच रह है ' तो कोई कुबेर कुंजी बैच रहा है । कोई बरकत लॉकिट तो कोई धन बर्षा यंत्र बैच रहा है । कोई गुरू फाइल बना रहा है ' तो कोई बाबा कऊए को खीर खिलाने का उपाय बता रहा है । और कोई बास्तू शास्त्री घर पर मनी प्लांट की बेल से धन पाने का तरीका बता रहा है ।
बडे दुख की बात है कि आज के इस बेज्ञानिक युग मे भी लोग  इन  अंधविश्वासो के चक्कर मे पड रहे है और  अपनी मेहनत का पैसा  इन धातुओं के तुकडो पर खराब करते है । जो सरासर झूठ होते है । अगर  इन सभी धन देने बाले  यंत्रों को आदमी अपने गले मे लटका कर हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहे और कुछ भी काम धंधा न करे ।  और फिर  इन यंत्रों के दुआरा धन  आए ' तब माना जाएगा कि इनमे शक्ति है । बरना यह सब बकवास एवं बेकार की बातें है ।
मेरे पडोसी के यहाँ पॉच साल से मनी प्लॉट की बेल लगी है । आज तक  उसमे मनी फलने की बात तो दूर  एक फूटी कोडी तक नही फली है ।
बगेर कर्म के कुछ भी नही पाया जा सकता है ।

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सोमवार, 7 दिसंबर 2015

जीवन मे काम धंधे का महत्व ।




सारी दुनिया के संपूर्ण ज्ञान सार यह है कि _ भोजन मुफ्त मे नही मिलता "  इसलिए मनुष्य को अपने जीवन मे कुछ न कुछ काम धंधा करना अनिवार्य होता है ।

कर्म  प्रधान विश्व कर राखा' जो जस करे सो तस फल चाखा ।
अर्थात - संसार मे कर्म  ही सबसे बडा माना गया है । जो आदमी जैसा काम करता है ' उसे उसका बैसा ही फल मिलता है ।
काम का फल नही छुटता फल मिलना तो अटल है । क्योकि  कर्म  से फल बधा होता है । इस संसार मे  सबकुछ है 'परंतू  बिना करम किए कुछ भी पाना असंभव है ।
एक बिचारक ने कहा है _ आदमी का दिमाग जिन चीजों को सोच सकता है ' आदमी उन चीजों को पा भी सकता है ।

                      " अपना हाथ जगन्नाथ "
युवक को अपने 18 साल का होने पर  अपने जीवन का लक्ष्य तय कर लेना चाहिए । कि उसे अपने  जीवन मे क्या करना है ।  अपनी रुचि और  इक्छा के अनुसार मनपसंद काम धंधे का चुनाव करना उचित होता है ।  जिसमे मॉता पिता को भी अपने युवा बच्चों  के उपर काम के विषय मे अपना निर्णय नही थोपना चाहिए । कि उनहे डॉ  बनाना है या पायलट बनाना है । क्योंकि इसके दुष्परिणाम सामने आते है । कुछ मॉ बाप बच्चों को अपने आदेश  से काम धंधा करवाते है । जिससे युवा अपने रूचि बाले काम धंधे न कर पाने से कुठित होकर हिसक प्रवृति के बन जाते है । उदाहरण के लिए हिटलर  अपने बच्चन मे चित्रकार बनना चाहता था पर  उसके मॉ बाप ने उसे नही बनने दिया । फिर बडा होकर हिटलर ने जो किया उसे दुनिया जानती है । विश्व युद्ध ।

आज की युवा पीढ़ी आलसी स्वभाव की है  जो शारीरिक श्रम के काम करना कम पसंद करती है । आराम के या दिमाग से काम करना अधिक पसंद करती है । जिसमे आज की शिक्षा का दोष है ।  कुछ युवा अपनी शिक्षा पूरी करने के उपरांत यूनिवर्सिटी से निकलने के बाद  अपने जीवन का लक्ष्य बनाते है और  फिर कामकाज करना आरंभ करते है ।
और कुछ युवा एसे निठल्ले होते है जो कुछ भी काम धंधा नही करते और  अपने बाप की कमाई पर ही रंगरलियॉ  मनाते रहते है । एसे युवा अपनी शादी होने के कुछ दिन बाद ही लाइन पर  आते है एवं फिर  अॉखे खुलने पर ही काम धंधे का मार्ग अपनाते है । जो जादा सफल नही बन पाते । क्योंकि यह लोग बाढ  आने के बाद नदी पार करना शुरू करते है जिसमें बहने के चान्स जादा रहते है । पार लगने के बहूत कम ।

दुनिया मे कुछ लोग  एसे भी होते है जो मुफ्त मे कडी मेहनत का काम करना भी पसंद करते है ।
उदाहरण :  मुझे बाजार मे लोहे की दुकान पर  एक 70 साल का बूढा मिला जो मुफ्त मे लोहा उठाने का काम करता था । और वह  रिटायर्ड पुलिस अॉफीसर था जो समय पास करने और शरीर की कसरत के लिए यह काम करता था ।
सोना उठाने का काम होता तो भी ठीक था ' पर लोहे का काम ' और एक धन संपन पुलिस आधिकारी ' वह भी मुफ्त मे ' है न  अचरज की बात ' पर दुनिया मे पागलो की कमी नही है मित्रों  एक ढुडो हजार मिलते है ।

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समय रूकने के प्रमाण एवं चमत्कार ।

🚁 ⛅ 🚠 पोराणिक कथाओं मे एसे और भी प्रमाण मिलते है । जो सच है या झूठ यह तो हम नही कह सकते पर हम  अपने अनुसार समय की व्याख्या जरूर कर सकते है । जो हमे आभास होता है । जैसे  समय हम सभी इंसानों के कभी कभी अचरज मय  और चमत्कारी सा लगता है । जैसे कि सयम का हर छण नबीन होना ' कभी कभार समय का एक सेकिंड सदियों सा लगता है ' और कभी एक साल भी एक दिन के बराबर लगता है ।  इस पूरे वृहमाण्ड मे मनुष्य ही एक  एसा प्राणी है जो समय से पीडित है । बाकी सभी जीवो के लिए समय का कोई महत्व नही है ।
समय की हकीकत तो यह है '  समय' शब्द के अर्थ  से  उजागर हो रही है ' जैसे _ सम+ य = समय ा  याने कि समय  सम है ' स्थर है । न कही जाता है और न कही से आता है । स्थर रहते हुए ही इलेक्ट्रॉन की तरह गोल घुमता हुआ गतिशील पृतीत होता है ।
ओशो के अनुसार _ मनुष्य के जन्म मृत्यु के पार समय मापन का कोई उपाय नही होता है । समय स्केल आदमी के जन्म के साथ शुरू होता है एवं मृत्यु के साथ समाप्त । फिर भी  आसली समय हमेशा रहता है ।
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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

दुकानों की बिक्री बढाने के तरीके ।

color">दुकानों की बिक्री बढाने के उपाय और भारी लाभ कमाए ।
सॉपिंग सेंटर के काउंटर पर सुंदर महिलाऔ को बैठी देखकर ' सॉपिंग करने ग्राहक अधिक आते है ।

सॉपिंग सर्बिस सेंटरो या दुकानों किसी भी सेबा व्वसाय को चलाने के लिए उस पर ग्राहको का आना बहुत जरूरी है । बाजार का हर दुकानदार यही चाहत है कि उसके सॉप पर अधिक से अधिक ग्राहक आए और उसकी सेबा या बस्तुए खरीदें ' जिससे वह अधिक लाभ कमाए । इस उद्देश्य को लेकर दुकानदार अपनी तरफ से हर वह तरीका अपनाते है ' जिससे उनकी ग्राहकी बढे और जादा माल बिके । बाजारों मे दुकाने दुल्हन की तरह सजी 'रंगीन लाइट मे झिलमिलाती रहती है । दूकानदार ग्राहको को आकृशित करने के बिभिन्न उपाय करते है । जैसे_ ग्राहको को बैठने की उत्तम गद्देदार व्यवस्था करना ' तो कोई अपने सॉप पर आने वाले हर ग्राहक को चाय पिलाता है ' कुछ कपडे आदि की दुकानों पर सामान के साथ कपडे के थेले मुफ्त मे दिये जाते है । पर इन उपायों से ग्राहको पर कोई बिशेष प्रभाव नही पडता इन उपायो को आम बात समझा जाता है । दुकानों पर ग्राहकों की संख्या मे बढोत्री करने के लिए कुछ खास उपायों करने की जरूरत होती है । जो नीचे दिए जा रहे है । ∆ दुकान पर ग्राहक की जरूरत का सभ सामान उपलब्ध होना चाहिए । ग्राहक खली निराश होकर नही लोटना चहिए । वरना वह फिर वह कभी दुकान पर नही आता है । ∆सेबा प्रदाताओ को ग्राहको के सुझावों के अनुसार अपनी सेबा को बेहतर बनाना चाहिए । ∆ ग्राहक लाने के लिए दुकानदार को कमीशन पर एजेंट रखना चाहिए । जिस तरह दिल्ली मुम्बई के बाजारों मे एजेंटों को ग्राहक लाने पर कमीशन दिया जाता है । ∆ अपने सॉपिंग सेंटर या सेबा संस्थान के मेन काउंटर पर सुन्दर महिलाओं को बिठाया जाना चाहिए । यह ग्राहको को लुभाने का बहुत ही कारगर उपाय है । ∆अपनी दुकान पर आने वाले हर ग्राहक से मधुर व्वहार करने के साथ ही उससे विनम्रता पूर्वक कहना चाहिए कि अगर आपको हमारी सेबा एवं हमारा व्वहार अच्छा लगा हो तो कृपया दो और लोगों से हमारे बारे मे जरूर कहना । ग्राहक बढाने का यह एक राम बॉण उपाय है । ∆दुकान के बाहर मनमोहक सुगंध फेलाना चाहिए । सुगंध के प्रभाव से देवत भी वशीभूत हो जाते है । फिर तो ग्राहक मनुष्य होता है वह इससे कैसे वच सकता है ।

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गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

खेतों मे प्लास्टिक कचरे का खतरा ।

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खेतों की मिट्टी मे प्लास्टिक पोलेथिन(पन्नी) से होने वाले नुक्सान का खतरा दिन प्रति बढता ही जा रहा है। खासकर गॉव शहरो के आसपास की जमीनों पर यह प्लास्टिक कच्डा बहुत तेजी से जमा हो रहा है । समय रहते इस कच्डे से जमीनों को बचाने के उपाय नही किए गए तो आने बाले समय मे आबादी के पास वाले खेतो मे फसलें उगाना असंभव हो जाएगा ।  क्योकि यह प्लास्टिक मिट्टी मे दबने पर बहुत सालो तक नष्ट नही होता  एवं पानी को मिट्टी मे रिसने से र रोकता है और जहाँ जहाँ मिट्टी मे प्लास्टिक पोलेथिने होती है ' वहाँ फसलो के पौधे अपनी जडे जमीन मे न जमा पाने के कारण सूख जाते है ।
अपने खेतो को प्लास्टिक कचडे से बचाने हेतु ' किसानों को निम्न  उपाय करना चाहिए । जैसे _
[1]  खेतों की सतह पर पाई जाने वाली पोलेथिन पन्नियो को  एक  एक करके बिनवाने के बाद संग्रह करके जला दे ' प्लास्टिक को जलाने पर भी इससे जहरीली गैसे निकलती है । पर  इसके अलावा  और कोई उपाय भी तो नही है ।
प्लास्टिक कच्डे का निपटारा करने के बाद ही किसानो को अपना खेत बखरना चाहिए जिससे प्लास्टिक जमीन मे ना दब पाए ।
[2]   खेतो मे खाद बीज कीटनाशक आदि का उपयोग करने के बाद  इनके खाली पेकिट खेत मे इधर  उधर नही छोडे । बल्कि इनहे एक जगह  इकटठा करके नष्ट करना चाहिए ।
[3]  खेतो मे प्लास्टिक कच्डा फेकने बालो पर नजर रखने के साथ ही उन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए ।

[4]  खेतों मे प्लास्टिक बोरियो का उपयोग पानी रोकने के लिए होता है ' एवं टेरीकाट कपडे का उपयोग कागभगोडा बनाने के लिए किया जाता है । उपयोग के बाद  इनका निपटारा करना चाहिए । टेरीकॉट कपडे और प्लास्टिक बोरियॉ तो जमीन मे दबने पर दो चार फिट जमीन को खराब करते है ।

[5] अक्सर गॉवो मे यह पाया जाता है कि किसानों के घर की महिलाएँ ' पशू  मबेशियो की  सार बखरी का  गोवर  जिस कूडे के ढेर पर फेकती है ' वे उसी ढेर पर  अपने घर का कच्डा भी फेकती है जिसमे लगभग 50% प्लास्टिक कच्डा होता है । और फिर किसान इस कूडे के ढेर को अपने ट्रेकटर ट्राली मे भरकर खेतो मे डालते है । जिससे बहुत मात्रा मे प्लास्टिक खेतो मे पहुँचता है ।  जो खाद के रूप मे फायदा कम ' प्लास्टिक के कारण नुकसान जादा होता है ।
जबकि किसानों को एसा करना चाहिए कि  घर  का कूडा अलग फिकवाए । एवं  मवेशियो से पैदा होने बाला  गोवर घॉस भूसे का कच्डा  अलग ढेर पर डलवाए ' जिसका उपयोग खेतो मे खाद के रूप मे करें ।
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खेतों में प्लास्टिक कण्डे के खतरे से सावधान ।

शनिवार, 28 नवंबर 2015

ग्रामीण खेती मजदूरो की दशा।


कृषी प्रधान देश भारत मे किसान को ही अन्नदाता माना जाता है । एवं श्रम का सारा श्रेय किसान को ही दिया जाता है । जवकि आज वह जमाने नही रहे तव किसान खुद  अपने खेतो मे हल चलाते थे । कवि उन पर लिखते थे कि _ सूरज के उगने से पहले खाट छोड  उठ गया किसान ' और चला खेत पर करने काम - - -  ।
आज तो कृषी कार्य मशीन यंत्रों से होता है । बाकी का सारा कृषी काम मजदूर करते है । किसान तो जमीन का मालिक होता है और प्रबंधन करता है । जबकि खेती मजदूर ठंड ' गरमी ' धूप ' बरसात  मे भी खेतो मे काम करते है । रात मे भी खेतो की रखवाली वा पानी सिचाई जेसे काम भी करते है । खेतो मे जहरीली दवाओं का छिडकाव  और धान की फसल मे सुगंध के कारण सॉपो के होने पर भी यह मजदूर  अपनी जान की परवाह किए बिना खेतो मे खतरा होने पर भी काम करते है । क्योकि इनहे अपना परिवार  चलाना होता है । पर  इन पर किसी की नजर नही जाती  न कवि  न पत्रकार न सरकार  कोई इनहे नही देखते ' सिवाय  एक चमगीदण के जो इनके अंधेरे झोपडो मे भी देख लेता है ।

मध्य भारत के गॉवो मे रहने वाले भूमी हीन लोगो के पास  आय का साधन न होने के कारण यह लोग खेती मजदूरी पर ही   निर्भर रहते है । पर हर बडा जानवर छोट को खाता है ' इस नियम के तहत किसान  इन मजदूरो का शोषण करके अपना धर्म निभाते है । बर्तमान समय मे गॉवो मे कृषी कामगारो से दिन मे 10 घंटे काम लिया जाता है । और  एक दिन की मजदूरी का रेट 150 रू से200 तक देय है । भुगतान  अनाज बिकने पर किया जाता है '  एवं जव  अनाज का अच्छा भाव होता है तब  अनाज बैचा जाता है । और फिर मजदूरो का भुगतान होता है ।
एसी स्थति मे बेचारा  कृषी मजदूर कैसे जीता होगा । सरकार के पास  इसका जवाव है ' नरेगा '  पर नरेगा मॉ  टी वी और कगजो मे ही दिखती है । नरेगा का सारा काम मशीनो से होता है । बैक से पैसा किराए के मजदूरो दुवारा निकलवा लिया जाता है ।
अब ग्रामीण मजदूर के पास  एक ही रास्ता होता है की वह शहर मे जाकर काम करे ' पर इनमे से कुछ लोग  अपनी जन्म भूमी नही छोडना चाहते । अब  इनके पास  आखरी बिकल्प होता है कि यह मजदूर बैक से रिण लेकर  अपना स्वरोजगार करे । पर  इस  अस्त्र का प्रयोग  इनके बापो ने पहले ही कर लिया ' और  अभी चुकाया नही गया ' इस कारण बैक रिण नही देता । कृषि कामगारों के लिए विशेष  कर  सरकार की भी कोई एसी योजना नही है जिसके चलते इन कामगारो का विकाश हो सके ' अरे हॉ याद  आया  एक योजना है सरकार की  २ रू किलो अनाज मिलने बाली योजना ' जिसके सहारे यह लोग जीवित रह सकते है । क्योकि अगर यह लोग नही रहेगे तो कृषि काम के अलावा भवन पुल बॉध बनाने का काम कोन करेग ।  फिर तो ईट मिट्टी गारे का काम भी इंजीनियर  को ही करना पडेगा । पर  एसी नोवत नही आएगी क्योकि  इन मजदूरो के बच्चे है ना जो  भविश्य मे मजदूरी करने के लिए तैयार हो रहै है ' सरकारी स्कूलो मे पढ कर  ' गॉव के सरकारी स्कूलो मे मजदूरो के ही बच्चे जादा पढते है । वहॉ इन बच्चो को ज्ञान के नाम पर मध्यान भोजन के रूप मे अल्प  अहार ही मिलता है ।
इन गॉव के गरीब लोगो के बारे  मे जानकारी मिलती है कि  इनमे से अधिकाश  के बाप दादा परदादा भी हलवाहे या खेतीहल मजदूर का ही काम करते थे । और  अब  इनके बच्चे भी आगे मजदूरी ही करेगे । इनकी किसमत मे मजदूरी करना ही लिखा है । यह  इनका दुरभाग्य है ।
चमगीदण की नजर मे इनका आर्थिक विकास असंभव ही नही नामुमकिन है ।

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चूना उघोग, कम लागत, आधिक मुनाफा

  आज भारत मे 75 पैरेंट लोग पान में जो चुना खाते है।  इस चूने को बनाना और इस तरह की डिब्बी में भरकर बेचने वाले लोग भारी मुनाफा कमाई करते है।