सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

नवरात्र मे ध्वनि प्रदूषण ।

नवदूर्गा  के आते ही ध्वनि प्रदूषण तेज हो जाता है ।जो दस दिन तक लोगों की रातों की नीद हराम करता है ।  हर झाँकी पर लाऊडस्पीकर लगे होते है जिन पर दिन रात भनन के रिकॉर्ड बजते है ।जिनसे निकलने वाली तेज ध्वनि तरंगों के कारण लोगों का ध्यान भटकता है 'विचार विषय का शोध नही कर पाता ' जिससे लोगों को काम काज के निर्णय लेने मे कठिनाई होती है । लोगों को आपसी संवाद मे भी बाधा महसूस होती है । झॉकियो पर लगे माइक की तेज  आवाज से बच्चों की पढाई भी बहुत प्रभावित होती है । कुछ दुर्गा झॉकी पर तो बडे बडे डी जे साऊड बजते है ' जिनसे निकलने बाली तेज  आवाज कान फोडती है । इस  आवाज का असर नवजात बच्चों के कान पर बहुत घातक हो सकता है ।
रवरात्र मे होने वाले ध्वनि शोरगुल के बिरोध मे आवाज उठाने पर स्थानिय दुर्गा उत्सव समीतियॉ चढ बेठती है ' उनका कहना होता है की हमारी आस्था पर ठेस पहुचाई जा रही है ।
पर धर्म की आड मे रात दिन लगातार तेज  आवाज मे माइक बजाने की मनमानी सरासर गलत है । इस विषय पर कडे नियम  कानून  लागू होने की जरूरत है । नियम  अनुसार रह झॉकी पर सुवह शाम  एक  एक घंटे पूजा आरती के समय पर ही माइक बजना एलाऊड होना चाहिए । सही मायने मे वही धार्मिक कार्यक्रम सही होता है जिससे दूशरो को असुबिधा नही होना चाहिए ।
          
                                       🌹🌹   "जय दुर्गे ' जय  अम्बे "🌹🌹

सोमवार, 26 सितंबर 2016

बुन्देली कवि ईसुरी ।

लोक कवि ईसुरी का जन्म सन 1841 को युपी के जिला झासी की माऊरानी पुर तेहसील मे मेढकी नामक गॉव मे हूआ था । ईसुरी वृहम्ण जाती के थे । उनके पिता जमीदार के याहॉ काम करते थे । ईसुरी को पढाने का बहुत प्रयास किया उनके पिता और मामा ने पर  ईसुरी का मन पढने मे नही लगा और वे अनपढ ही रहे ।ईसुरी खेतो की रखवाली का काम करते थे ' एवं खेतो की मेडो पर  एकांत मे बैठे बैठे मन ही मन कविता गढते फिर लोगो को सुनाते उनकी कविताए सुन कर लोग बहुत खुश होते ।ईसुरी की प्रेम रस की कविताए स्थानिय बुनदेलखंडी भाषा मे होती थी ।ईसुरी से प्रभावित होकर  उनके शिष्य बने ' धीरज पंडा ' जो ईसुर की कविता को लेखाकित करते थे ।उसी भाषा मे जयो की त्यो बुन्देली मेलिखते थे ।{बुन्देली भाषा बहुत प्यारी भाषा है अगर  इस भाषा मे कोई गाली भी देता है तो वह भी मीठी लगती है ।एक कवि  ने कहा है _ एसी प्यारी लगत बुन्देली ' जैसी कोई नार नवेली ।}
ईसुरी मुंशी प्रेमचंद्र की भाती जन जीवन पर  आधारित रचनाए लिखते थे ।और वे अपने जीवन पर भी कविता बनाते थे ।ईसुरी का विवाह श्यामबाई के साथ हुआ ' फिर  उनके यहाँ तीन लडकियों का जन्म हुआ ' अपने जीवन के इस पायदान पर  ईसुरी ने एक कविता तैयार की_ जब से सिर पर परी गृहस्ती ' ईसुर भूल गये सब मस्ती ।
ईसुरी की कविता से प्रभावित होकर छतरपुर के राजा ने ईसुरी के दरबारी कवि बनाने का संदेश भेजा जिसे ईसुरी ने स्वीकार नही किया ' और जवाब मे एक कविता लिख भेजी की ईसुरी को चाकरी पसंद नही है ।जब  उनकी पत्नी का दिहांत हो गया ' तो ईसुरी दूशरे गॉव मे रहने लगे जहाँ उनहे एक रंगरेजन से प्यार हो गया ।
इसमे दोराय हैं कोई कहता है की ईसुरी की प्रेमिका ' रजऊ ' उनकी काल्पनिक प्रेमिका थी जो उनकी कविताओं की पात्र थी । हकीकत जोभी हो ईसुर जाने ।सन 1909 मे ईसुरी का  दिहांत हो गया ।इसके कुछ समय बाद बुंदेलखंड की नचनारीओ ने अपने नाच के दोरान  ईसुरी की कविताए गाना शुरू किया जिससे ईसुरी का नाम दूर दूर तक जाना जाने लगा ।
इसके बाथ  ईसुरी की कविताए होली के अवसर पर फाग के नाम से गाने का चलन चला जो आज भी कायम है ।अब  ईसुरी की फागो के बिना होली के रंग फीके लगते है ।क्योंकि उनकी प्रेमरस भरी कविताए मन को छू जाती है ।ईसुरी की कविता फाग के नाम से प्रशिध है ।और  ईसुरी आज भी लोगो के दिल मे बसे है ।
ईसुरी की कविता की पंक्तियाँ _ 
ऐगर बैठ लेओ कछू कानें ' काम जनम भर रानें " 
सबसौ लागो रातु जियत भर ' जा नईं कभऊँबढानें " 
करियो काम घरी भर रै के ' बिगर कछू नईं जानें " 
इ धंधे के बीच  ईसुरी ' करत करत मर जाने ।
एसे थे बुंदेलखंड के कवि ईसुरी ।

शनिवार, 24 सितंबर 2016

केसिट बेचने बाला बना बना 'डायरेक्टर ।

मधुर भंडारकर 
यह सफलता की कहानी एक  एसे लडके की है जिसका बच्पन संघर्ष मे बीता ' फिर भी उसने अपने लक्ष्य को पा कर ही दम लिया । 26 अगस्त 1968 मे मायानगरी मुम्बई के उपनगर खार के एक गरीब परिवार मे जन्मे मधुर भंडारकर ।
मधुर जब  स्कूल मे पढ रहे थे ' उसी दोरान  उनके परिवार की आर्थिक दशा किन्हीं कारणों से बिगड़ गई । और मधुर को अपनी पढाई छोडकर काम धंधा करना पडा जिससे उनके परिवार का खर्च चल चल सके ' मधुर साइकिल से घर घर जा कर वीडियो केसिट बेचने का काम करने लगे । इस काम के दौरान वे फिल्म स्टारो के घर पर भी केसिट देने जाते थे ' उस समय के सुपर स्टार मिथुन  के घर भी मधुर केसिट पहुचाते थे ।
मधुर बच्पन से ही मेघावी थे एवं उन्हें फिल्म देखने का भी सोक था ' मधुर के मधुर संबंध फिल्मों से जुडे लोगों  के साथ थे ' इस फिल्मी माहौल मे रहने के कारण  एक डायरेक्टर ने मधुर को सहायक के तोर पर काम पर रख लिया । इस काम के दौरान मधुर ने फिल्म डायरेक्शन मे बहुत कुछ सीखा । इसके बाद मधुर को रामगोपाल बर्मा की फिल्म रगीला मे एक छोटा सा रोल मिला जिसे मधुर ने निभाया । फिर मधुर को एक  और डायरेक्टर के साथ सहायक डायरेकटर के रूप मे काम करने का मोका मिला ।
चाँदनी बार 'फिल्म
सन 2001मे मधुर के डायरेक्शन मे बनी फिल्म चाँदनी बार  आई । जिसमे मधुर के निर्देशन को काफी सराहना मिली ।और  उन्हें राष्ट्रीय पुरुस्कार से भी संम्मानित किया गया । फिल्म 'चाँदनी बार ' से प्रकाश मे आए इक्कीसबी सदी के श्रेष्ठ निर्देशक मधुर भंडारकर । इसके बाद मधुर के डायरेक्शन मे जो फिल्में बनी वे भी बहुत सफल रही । उनके डायरेक्शन मे बनी फिल्मों मे  सत्ता ' आन मेन  एट वर्क ' पेज 3 ' कॉरपोरेट ' टैफिक सिग्नल ' फेशन 'जेल ' दिल तो बच्चा है जी '  प्रमुख्य है ।उन्की ये सभी फिल्मे बहुत सफल रही । मधुर भंडारकर को  सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला है । पटकथा लेखक  और फिल्म निर्देशक  मधुर भंडारकर  एक प्रशिद्ध हस्ती है ।

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

एक रुपया बंद होगा ।

भारत की मुद्रा का एक रुपया का सिक्का  अब जल्दी ही बंद होने बाला है ।वह  इसलिए कि अब  एक रुपये मे मिलता ही क्या है । अब  एक रुपये की जरूरत नाम मात्र के लिए ही रह  गई है । यह  अनुमान लग रहा है कि 2017के अंत तक देश मे एक रुपये का चलन पूरी तरह से बंद हो जाएगा ।
एक रुपया मुल्य की चंद वस्तुएं ।
माचिस ' टॉफी ' पान का पत्ता ' शेम्पो शेशै ' खाने का चूना पाऊज ' छोटी सूई ' आदि ।
एक रुपया बंद होने पर भिखारियो को लाभ होगा ' फिर  उन्हे भीख मे सीधे दो रुपये ही मिलेगे ।
एक रुपया बंद होने पर सबसे जादा लाभ  उन वस्तुओं के निर्माताओ को होगा जो वस्तुएं आज  एक रुपये मे बिक रही है ' क्योंकि फिर  इन वस्तुओ की कीमत दुगनी यानी दो रुपये हो जाएगी ।✌✌
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गुरुवार, 22 सितंबर 2016

मच्छर भगाने की घरेलू दबाई ।

मुफ्त मे मच्छरो से बचने का सबसे सरल  उपाय ।
मलेरिया ' डेंगू ' चिकिनगुया जैसी घातक बीमारियां फेलाने बाला मचछर ' आदमी का सबसे बडा दुश्मन है ।
इससे बचने के लिए हमे ना जाने क्या क्य  उपाय करने पडते है । कॉयल जलाना ' क्रीम ' लगाना ' पंखा और मच्छर दानी मे सोना आदि । इन सभी उपायों के बाद भी मच्छरों से बचना कठिन होता है ।
मच्छर की घरेलू दबा बनाना ।
यह दबा बनाने का तरीका यह है _ सरसों के तेल मे नीम की पत्तियों को आग पर पकाने के बाद तेल को ठंडा होने पर ' छानकर शीशी मे भर ले । बस तैयार है मच्छर भगाने की दबाई ।
इस तेल की मालिश शारीर पर करने के बाद मच्छर काटना तो दूर पास भी नही आते ' इस तेल का सबसे बडा दूशरा फायदा यह है की इससे अन्य त्वचा रोग भी नही होते जैसे दाद ' खाज ' खुजली ' फुन्सी आदि । गुप्त अंगो की पसीने बाली खुजली का तो यह तेल  आजमाया हुआ राम बॉण  इलाज है ।क्योंकि इसमे नीम जो है ।इस तेल का शरीर पर कोई हानिकारक असर नही पडता ।
मच्छरों से बचने का यह घरेलू नुस्खा 'एक  आजमाया हुआ कारगर  उपाय है ' और वह भी बगेर पैसा का जिससे कॉयल पर  खर्च होने बाले रुपये भी बचते है ।
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धोती पर संकट के बादल ।

भारतिय पुरुष परिधान 'धोती कुरता और रूमाल ' अब लुप्त होने की कगार पर खडे है । पिछले दो तीन दशक से भारतीय संस्कृति के पहनावे पर पाश्चात्य संस्कृति के बढते चलन के कारण धोती खोती जा रही है । आज का युवा जीन्स पहनना अधिक पसंद कर रहा है । शहरों मे तो बूढे स्त्री पुरुष भी जीन्स टीसर्ट पहने अधिक देखे जाते है ।केवल गांव मे ही 60 साल से जादा आयु के लोग धोती कुरता पहनते है ' इन बूढो के समाप्त होते ही धोती गांव से भी विदा हो जाएगी । पर कुरता रहेगा क्योंकि कुरते ने जीन्स के साथ रिस्ता बना लिया है । साफा का तो पता ही नही कब गले से गिर गया । आने बाले 30 साल बाद धोती बाले लोग केवल फोटो मे ही देखे जाएगे ।
स्वदेशी कार्यक्रम
एक फिल्म का बहुत सुन्दर केरेक्टर है ' स्वदेशी पर जो कुछ  इस प्रकार है _ स्वदेशी कार्यक्रम मे मंच पर  एक मंत्री भाषण देता है स्वदेशी पर  इसी बीच  एक जीन्स टी सर्ट बाला लडका मंच पर  आता है और मत्री के हाथ से माइक बोलता है की मे आपकी बात का समरथन करते हुए ' अभी इसी वक्त  इन विदेशी कपडो का बहिस्कार करता हू ' यह कहते हुए यूवक  अपने जीन्स टी सर्ट उतार कर फेक देता है ' जिस पर लोग तालियाँ बजाते  है ' तालियो की गडगडाहट खत्म होने पर फिर वह यूवक यह कहते हुए अपने अंडरवियर की तरफ हाथ बढाता है की यह भी विदेशी है ' स्वदेशी तो चड्डी है ' और मे इसका भी बहिस्कार करता हू ' यह सुनकर जनता नहीSs  नहीSs  चिल्लाकर भागने लगे ।
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बुधवार, 21 सितंबर 2016

उज्जैन की छटा मे लगे चार चाँद ।

उज्जैन शहर भारत का सबसे पुराना एतिहासिक शहर है । इसका पुराना नाम 'उजेनी ' था ।भगवान श्री कृष्ण ने यहाँ सांदीप मुनी से विध्या अधयन किया था । यह स्थान आज भी है जो सांदीपनी आश्रम के नाम से जाना जाता है ।

उज्जैन शहर का रामायण मे भी उल्लेख है ।कागभुशुण्डि गरूड संवाद ' मे कागभुशुण्डि गरुड को 27कल्प पहले के अपने एक जन्म की कथा सुनाते हु कहते है की _ उस समय के कलयुग मे मेरा जन्म अवध मे हुआ था । जव  अवध मे अकाल पडा तो मे 'उजेनी नगरी चलागया और वहाँ मेने कुछ संपत्ति पाई ।फिर मे वही रहकर शिव भक्ति करने लागा ।
इस संवाद से पता चलता है की उज्जैन कितने कल्प पुराना शहर है ।
उज्जैन अभी भी सुनदर शहर है । पर  अब  अति सुन्दर हो जाएगा । हाल ही मे सरकार के केंद्रीय शहरी विकास मंत्री ने स्मार्ट सिटी की तीसरी लिस्ट जारी की है । जिसमे  मध्य प्रदेश को दो शहर शामिल है । उन्मे से एक  उज्जैन भी है ।  और  अब  जब  उज्जैन स्मार्ट सिटी बन जाएगा तो उसकी छटा मे चार चाँद लग जाएगे ।
उज्जैन के एक राजा हुए थे । बिकृमादित्य ' उन्होंने ही बिकृम संवत सन चलाया था । राजा बिक्रम  आदित्य का सिहासन  आज भी मोजूद है जो अब क्षति ग्रहस्त है ।
महाकाल ' की नगरी उज्जैन का महाकालेश्वर मदिर भगवान शिव के बारह ज्योत्रिलिंगो मे से एक है ।इसलिए यहाँ हर बारह बरष बाद सिंहस्थ मेला लगता है ।उज्जैन मे सबसे जादा शिव के मंदिर है ।यहाँ की क्षिप्रा नदी भी पावन नदियों मे से एक है ।
उज्जैन ने अतीत की अनेक मानव सभ्यताओ को अपने मे जिया है ।यह शहर साक्षी है मानव के सबसे पुराने इतिहास का ' इसने समय के कितने उतार चढाव देखे होगे 'कभी उज्जैन शहर भी दिल्ली जैसा विशाल और विकसित शहर रहा होगा ।सुन्दर भी होगा ।अब फिर समय चक्र उज्जैन को  एक सुन्दर शहर के रूप मे बनाकर भविष्य मे ला रहा है ।

चूना उघोग, कम लागत, आधिक मुनाफा

  आज भारत मे 75 पैरेंट लोग पान में जो चुना खाते है।  इस चूने को बनाना और इस तरह की डिब्बी में भरकर बेचने वाले लोग भारी मुनाफा कमाई करते है।